जरुरत इस बात की है इस तरह के मामले को तूल देने की अतिवादिता से बचा जाये और इतने संवेदनशील मसले को व्यावसायिक होने से बचाया जा सके. हाँ इस बात पर अवश्य गहन मंत्रणा हो कि किस तरह भारतीय महिलाओं को सरंक्षण मिले, इस तरह की घटनाओं से तकलीफ यह भी होती है कि समाज में नकारात्मक चीजें आ गयी हैं एक तरफ जहाँ निर्भया कांड के बाद लोगों ने एकजुट होकर सजगता भी दिखाई है तो वहीँ दूसरी ओर कई नए प्रकार विवाद भी जन्म ले रहे हैं बात चाहे महिलाओं के पहनावे की हो या फिर उनके चूक और लापरवाही की अगर इस तरह की अटकलों से उनका समाज में शोषण होना सही ठहराया जा रहा है तो यह तर्क निरर्थक है फिर तो इसके विरोध में तमाम स्वर पुरुषवादी मानसिकता को लेकर उठने लगेंगे. बात इसके समाधान की है, निर्भया का मामला एक दुखद घटना है यह सिर्फ महिला अस्मिता को तार तार करने का मामला ही नहीं बल्कि नृशंस रूप से की गयी हत्या है इस घटना के कारण लड़कियों की सुरक्षा को लेकर उनके परिवारजन पहले की तुलना में अधिक अत्यधिक चिंतित हो गए हैं. यहाँ तक कि उन्हें बाहर पढ़ाई या नौकरी के लिए भेजने से डरने लगे हैं इस दिशा में जागरूकता और समाधान की आवश्यकता है जहाँ तक प्रश्न निर्भया के दोषी के बयान या बीबीसी की फिल्म का है इस घटना को अत्तयधिक तूल दिया जा रहा है तथा भारतीय संस्कृति की छवि को धूमिल किया जा रहा है.