एक पुरानी कविता -( ईश्वर से किया गया संवाद )………। अन्तःवैक्तिव्य संचार का उदाहरण
कहाँ विलीन हो गया
जीवन का वो आनंद बोध
मन उदास क्यों हो चला।
मेरे एकांत पलों के चिर शांतिवाहक
जीवंत पलों के स्वर्णिम अधिनायक
तुम्हें खोजने को अब कौन सी गति से
मन अविराम हो चला
जब भी पुकारती हूँ,
हर बार तेरी दस्तक
चुपके से करीब आती
मैं पास हूँ तेरे यह आस,
मेरे पथ को आलोकित कर जाती
तेरा यह स्पंदन
जीवन की समूची तरंगों को
चुंबकित कर जाता
प्राण की हर स्वांस को
सिर्फ तेरे ही गीत सुनाता
हर पल यह गीत,
मधुर ताजगी से
मुझे अपने पास बुलाता
मन झंकृत हो जाता
जब तेरी वीणा से कोई तान,
अपने राग को सुनाताA
फिर से अमृत बरसायेगी
फिर निर्झर हो जाएगी,
जब शीतल जल की धार,
मेरे अंतस में लहरायेगी।
तेरा यह आवाहन,
फिर मेरे आनंद लोक में,
एक अलौलिक दीप बन जायेगाA
हर पल हर छण]
बस तेरी ही झनकार
मेरे अमिट मार्ग को,
अविचल अडिग बनायेगीA
दूर हो चलेगा सब कोलाहल,
जब अपूर्व शांति का अदभुत मनोरम,
गंतव्य पथ का अलौलिक निमंत्रण,
मेरे सूक्ष्म मन को तेरा सन्देश सुनायेगीA
तेरी यह दिव्य वाणी फिर मेरी याद में,
हमेशा संचित हो जायेगीA
और यह संदेशा,
कहीं दूर तक ले जायेगीA
घने अँधेरे में जब कोई पथिक,
तेरी टेर लगायेगा,
तो समझ लेना]
तेरी आस में कोई बुझता दिया,
अपनी लौ जलाने,
टिमटिमाने तेरे पास ही आयेगाA