मंगलवार, 12 अप्रैल 2016

साम्राज्य

साम्राज्य
यह कविता उन तमाम देशी विदेशी आक्रांताओं को ध्यान में रखते हुए लिखी गई है जो भारत की पुण्य भूमि को लूटने के उद्देश्य से यहां आये या फिर एक राज्य से दूसरे राज्य गए .और ज्ञान व प्रकाश की खोज में रत भारत को विदेशी साम्राज्यवादी नीति का अंग बनते देखकर कुछ साधकों व दृष्टाओं के मन में यह विचार जन्मे.

ढे होंगे किले,
बसाए होंगे महल!
तुम्हारे पास, 
तोप और तलवार का बल!
साथ यात्रियों का,
एक सहस्त्र दल!
सैनिकों की टुकड़ी,
मोर्चेबंदी और सेंधमारी में कुशल!
मेरे पास कुछ नहीं,
मात्र भ्रम के कुहासे में ढकी,
भोर की एक नन्हीं उजली किरण!
मेरे जीवन की आशा,
संजो कर कुछ जुटा पाने का संतोष,
मिल बांट कर खाने का सुख!
कुछ स्वाध्याय का तप,
प्रकृति अलमस्त फकीर!
असीम संवेदनाओ से उपजे,
वैराग्य की स्मृति के,
वो सुनहरे पल!!
                             **********   प्रतिभा कटियार 

May you move in harmony, may you speak in unison; let our mind be equanimous like in the begining; let the divinity manifest in your sacred endeavours.

https://www.youtube.com/watch?v=ijQB3Chpteg&feature=youtube_gdata_player