साम्राज्य
यह कविता उन तमाम देशी विदेशी आक्रांताओं को ध्यान में रखते हुए लिखी गई है जो भारत की पुण्य भूमि को लूटने के उद्देश्य से यहां आये या फिर एक राज्य से दूसरे राज्य गए .और ज्ञान व प्रकाश की खोज में रत भारत को विदेशी साम्राज्यवादी नीति का अंग बनते देखकर कुछ साधकों व दृष्टाओं के मन में यह विचार जन्मे.
गढे होंगे किले,
बसाए होंगे महल!
तुम्हारे पास,
तोप और तलवार का बल!
बसाए होंगे महल!
तुम्हारे पास,
तोप और तलवार का बल!
साथ यात्रियों का,
एक सहस्त्र दल!
सैनिकों की टुकड़ी,
मोर्चेबंदी और सेंधमारी में कुशल!
मेरे पास कुछ नहीं,
मात्र भ्रम के कुहासे में ढकी,
भोर की एक नन्हीं उजली किरण!
मेरे जीवन की आशा,
संजो कर कुछ जुटा पाने का संतोष,
मिल बांट कर खाने का सुख!
कुछ स्वाध्याय का तप,
प्रकृति अलमस्त फकीर!
असीम संवेदनाओ से उपजे,
वैराग्य की स्मृति के,
वो सुनहरे पल!!
********** प्रतिभा कटियार
एक सहस्त्र दल!
सैनिकों की टुकड़ी,
मोर्चेबंदी और सेंधमारी में कुशल!
मेरे पास कुछ नहीं,
मात्र भ्रम के कुहासे में ढकी,
भोर की एक नन्हीं उजली किरण!
मेरे जीवन की आशा,
संजो कर कुछ जुटा पाने का संतोष,
मिल बांट कर खाने का सुख!
कुछ स्वाध्याय का तप,
प्रकृति अलमस्त फकीर!
असीम संवेदनाओ से उपजे,
वैराग्य की स्मृति के,
वो सुनहरे पल!!
********** प्रतिभा कटियार