शनिवार, 25 दिसंबर 2021

तीव्र विकास ही नहीं बल्कि सतत व समग्र विकास भी जरूरी l

सरकार विकास की योजनाएं बनाने के साथ साथ कल्याणकारी योजनाएं बनाती है ताकि उसका लाभ सभी वर्ग के लोगों को मिल सके विशेषकर सर्वाधिक गरीब और वंचित समूह को ध्यान में रखकर l किन्तु कोई भी सरकार जो पांच वर्ष के लिए चुनी जाती है उसका उद्देश्य सिर्फ तीव्र विकास की गति को ध्यान में रखकर नहीं किया जाना चाहिए ना ही पांच वर्षों में उसके द्वारा कितने कार्य किए गए इसकी गणना कराने पर बल्कि विकास की अन्य परिभाषाओं को भी साथ लेकर चलना चाहिए जैसे कि सतत विकास यानी sustainable development l चमचमाती सड़कें तो बनें पर उन सड़कों को बनाने में कितने पेड़ कटे इसका भी पूरा ध्यान रखा जाए क्या वास्तव में इन पेड़ों की भरपाई का पूरा प्रयास हो पा रहा है l यही बात रोजगार के क्षेत्र के लिए है जितने रोजगारों का सृजन किया जा रहा या जो पहले से चली आ रही नौकरियां हैं क्या वहाँ अन्य आवश्यकताओं ट्रांसफ़र, प्रमोशन का अनुपालन हो पा रहा है l बिडम्बना है कि यहां कार्यरत संगठनों को सिर्फ बुढ़ापे के पेंशन की चिंता है वर्तमान जीवन ठीक ढंग से सुचारू व संचालित हो इसकी नहींl सतत व समग्र विकास का मजबूत ढांचा तैयार करने के साथ-साथ शांति पूर्ण समझौतों में भी सांसदों की भूमिका होनी चाहिए ताकि नागरिक सुनिश्चित हो सकें उनका बहुमूल्य वोट किसी वोट बैंक के खाते में नहीं बल्कि विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र प्रणाली में गया है l

रविवार, 21 मार्च 2021

देता ना दशमलव भारत तो...

जब जीरो दिया मेरे भारत ने दुनिया को तब गिनती आयी, किन्तु पूरे सौ तक गिनती ना आयी सिर्फ बीस यानी twenty तक आयी उसके बाद दुनिया ने उन्हीं अंकों के place value यानी स्थानीय मान से आगे का काम चला लिया l सरकारी प्राथमिक विद्यालय की कक्षाओं में जब बच्चों को गिनती सीखते समय, दहाई के अंकों को सीखने में उनके नाम के साथ अलग से स्थानीय मान सहित बोलकर रटते हुए देखा जैसे दो एक इक्कीस दो दहाई एक इकाई, इसी तरह पूरे सौ अंकों तक जाते जाते उन्हें दो साल गणित के न्यूनतम स्तर को हासिल में करने लग जाते हैं और वो इसे तब तक रटते हैं जब तक कि एक उच्च स्वर के आलाप तक नहीं पहुंच जाते l  place value यानी स्थानीय मान सहित गिनती सीखना उन नन्हें अबोध बच्चों पर एक अतिरिक्त भार है जो हिन्दी में गणित सीखते हैं क्योंकि वो 100 अंक तक के अंकों की पहचान भी हिंदी में सीखते हैं और प्लेस वैल्यू को भी जबकि अंग्रेजी माध्यम में पड़ने वाले हिंदी में अंकों को पहचानते भी नहीं l उन्हें तो सिर्फ ट्वेंटी तक याद रखना पड़ता है l इसके आगे तो स्वतः काम चल जाता है आगे आगे स्थानीय मान पीछे पीछे अंकl किन्तु हिन्दी में एक लंबी यात्रा है इक्कीस बाइस तेईस...l यद्यपि अंकों के स्थानीय मान का आविष्कार भी भारत में ही हुआ था। भारतीय अंक प्रणाली संसार की सबसे प्राचीन अंक प्रणाली हैl  इसका प्रसार भारत से अरब और अरब से होते हुए यूरोप तक गया l यूरोप में बारहवीं शताब्दी तक रोमन अंकों का प्रयोग किया जाता रहा l रोमन सिर्फ सात अंकों को जानते थे और इन्हें अक्षर द्वारा अभिव्यक्त करते थे l और संख्याओं की गणना करने में इन्हीं सात अक्षरों से काम चलाते थे जो कि एक जटिल सरंचना का रूप ले लेती थी l और गणना करने में त्रुटि होने की अधिक संभावना रहती थी l समय के साथ प्राचीन भारतीय अंक पद्धति को लिखने में हम अंतरराष्ट्रीय मानक स्वरूप का प्रयोग करने लगे किन्तु नेपाल में आज भी अंकों को देवनागरी लिपि में लिखने का राष्ट्रीय गौरव प्राप्त है l गणित की ये वैश्विक यात्रा बड़ी मनोरंजक है अगर इस यात्रा पर निकलना है तो चलो फिर शून्य से शुरू करते हैं l