वाह रे ब्लॉग तू तो है एकदम बिंदास
क्या-क्या नाम रचे तूने कोई अगड़म-बगड़म तो कोई है भड़ास
जो भी दिमाग में आ जाए बकबास
झटपट लिख डालो वरना सब खलॉस
अब तो लिखने के साधन का बहुत हो चुका विकास
खड़िया, स्लेट, कॉपी किताब अब तो आती इनसे उबास
वाह रे मानव जाति के बदमाश
न जाने कितने रच डाले तूने साहित्य उपन्यास
पर नही बन सका कोई कबीर या रैदास
प्रकट नही हो सका पुनः कोई वेदव्यास
किसी समय लोग करते थे अज्ञातवास
जीवन का रहस्य दूढ़ते थे और देते थे ज्ञान का प्रकाश
लेकिन अब तो लेखन का बदल चुका सारांश
अब तो बस बातों-बातों में होता है परिहास
सच्ची बात कहूँ तो प्यारे यह है विचारों का सत्यानाश
हे मानव अपने ज्ञान का कुछ तो कर आभास
क्यों अपनी गरिमा भूल के तू करता है उपहास
यही सोचते-सोचते एक दिन मेरा मन हो गया उदास
एक आस जगी 'मीमांसा' से मै भी निकालू मन की भड़ास
समझ सको तो समझो प्राणी इन बातों का सारांश
कुछ तो ऐसा लिख डालो जो फ़िर से रच दे इतिहास।प्रतिभा कटियार
क्या-क्या नाम रचे तूने कोई अगड़म-बगड़म तो कोई है भड़ास
जो भी दिमाग में आ जाए बकबास
झटपट लिख डालो वरना सब खलॉस
अब तो लिखने के साधन का बहुत हो चुका विकास
खड़िया, स्लेट, कॉपी किताब अब तो आती इनसे उबास
वाह रे मानव जाति के बदमाश
न जाने कितने रच डाले तूने साहित्य उपन्यास
पर नही बन सका कोई कबीर या रैदास
प्रकट नही हो सका पुनः कोई वेदव्यास
किसी समय लोग करते थे अज्ञातवास
जीवन का रहस्य दूढ़ते थे और देते थे ज्ञान का प्रकाश
लेकिन अब तो लेखन का बदल चुका सारांश
अब तो बस बातों-बातों में होता है परिहास
सच्ची बात कहूँ तो प्यारे यह है विचारों का सत्यानाश
हे मानव अपने ज्ञान का कुछ तो कर आभास
क्यों अपनी गरिमा भूल के तू करता है उपहास
यही सोचते-सोचते एक दिन मेरा मन हो गया उदास
एक आस जगी 'मीमांसा' से मै भी निकालू मन की भड़ास
समझ सको तो समझो प्राणी इन बातों का सारांश
कुछ तो ऐसा लिख डालो जो फ़िर से रच दे इतिहास।प्रतिभा कटियार
bahut khoob rachna blog par...
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