सोमवार, 27 सितंबर 2010

बुद्ध की व्यथा


यह कैसा संसार

जिसमे दुःख ही दुःख है अपार

क्या कारण है इस दुःख का

कोई तो बताओ रहस्य इस जग का

क्या मृत्यु ही है अंत सबका

फिर क्यों जन्मा जीव जब यही हश्र है उसका

जीवन की यह जटिल पहेली

कोई तो सुलझाओ इसे मेरी बुद्धि है अकेली

मानवता का यह कैसा नाता

जो पल भर में सारे नाते तोड़ जाता

कौन है जगत का रचयिता

क्या नियम है तेरा इस सृजन का

कैसी तेरी करूणा

क्यों भर दी लोगों में तृष्णा

जो है इस दुःख का मूल

क्या जानकर भी हो गयी है तुझसे भूल

कैसी तेरी माया

क्यों झूटी है सबकी काया

मरणशील है सब जीव

नाशवान है यह शरीर

फिर भी जन्मने को प्राणी अधीर

जन्म और मरण

हम किसका करें वरण

जब दोनों है नाशवान

क्यों करे आवाहन इनका कोई विवेकवान .




प्रतिभा कटियार