शनिवार, 8 अगस्त 2015

पहाड़


                                     पहाड़ 
 मैं जब निकली पहली बार देखने को पहाड़ 
     मन में एक धुंधली सी छाया लेकर
बस इसी अभिलाषा से आयी थी इस ओर 
           याद है मुझे वो हर पल 
जब आँखें सिर्फ ऊंचाईयां नाप रही थीं 
        साथ में गहरी खाई भी थी 
इसलिये संभल संभल कर चल रही थी  
         सर्दी की हल्की सी छुअन 
अहसास दे रही थी भौगोलिक विभिन्नता का 
      मैदानों से कितनी अलग है ये भूमि 
यही सोचकर तुलनात्मक अध्यन कर रही थी 
      गहरी खाई और ऊँचाई को देखकर 
        जीवन दर्शन समझ रही थी।

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