पहाड़
मैं जब निकली पहली बार देखने को पहाड़
मन में एक धुंधली सी छाया लेकर
बस इसी अभिलाषा से आयी थी इस ओर
याद है मुझे वो हर पल
जब आँखें सिर्फ ऊंचाईयां नाप रही थीं
साथ में गहरी खाई भी थी
इसलिये संभल संभल कर चल रही थी
सर्दी की हल्की सी छुअन
अहसास दे रही थी भौगोलिक विभिन्नता का
मैदानों से कितनी अलग है ये भूमि
यही सोचकर तुलनात्मक अध्यन कर रही थी
गहरी खाई और ऊँचाई को देखकर
जीवन दर्शन समझ रही थी।
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