शनिवार, 17 सितंबर 2016

सतत विकास के साथ जरुरी है सतत खोज

सतत विकास के साथ जरुरी है सतत खोज 

 प्रसिद्ध तमिल कवि सुब्रह्मण्यम भारती की रचना की कुछ पंक्तियां हैं जिसका आशय है यदि एक भी आदमी के पास खाने को नहीं होगा तो हम इस दुनिया को नष्ट कर देंगे।
      हर भारतीय को देश की तरक़्क़ी का लाभ मिले इस प्रयास की खोज ने एक महत्वपूर्ण विकासात्मक सोच को 20 वीं सदी के उत्तरार्ध में जन्म दिया। और उसके बाद विकास के नाम पर अधिकांश अविकसित देशों ने विकसित देशों की नकल करना शुरु कर दिया।
     आधुनिक प्रौद्योगिकी ने विस्फोटक की तरह विकास काे और तीव्र कर दिया। इस बीच विकास के कई स्वरुप; अवधारणायें एवं मॉडल उभर कर आए और इससे यह सोच बनने लगी कि पूरी दुनिया के विकास की सोच में समरूपता हो समग्रता और एकता हो।
      पर अनगिनत विचारकों से बात करने और ज्ञान प्राप्त करने के बाद अचानक दाना मांझी जैसी घटना के बाद विकास की हर अवधारणा पर सबालिया निशान लग रहे हैं। और इस घटना ने एक बार फिर विकास के नये- नये मार्गों की खोज पर विवश कर दिया है। क्यों ना फिर से भूले बिसरे लोगों आदिवासी समाज और लुप्त जनजातियों के दरवाजों पर दस्तक देना आरंभ किया जाये।
दाना मांझी
दाना माझी पत्नी का शव लिए हुए अपनी  बेटी के साथ 
           सतत विकास के साथ सतत खोज की भी आवश्यकता है। हालांकि संचार माध्यमों के द्वारा दाना मांझी घटना के प्रसारण के बाद उनको ना सिर्फ सरकारी व निजी स्तर पर बल्कि बहरीन से आर्थिक मदद भी मिली है। चूंकि गरीबी के अंतर्राष्ट्रीय सरोकार भी हैं इसलिए अंतरराष्ट्रीय संवेदना दी है और इसकी सराहना भी होनी चाहिए। पर इस संबंध में सबसे अधिक निर्णायक कार्यवाही भारत को ही करनी चाहिए।
            हमें अपनी खोज और प्रयास देश की विलुप्त हो रही पारंपरिक ज्ञान संपदा प्रौद्योगिकी और उस सामाजिक परिवेश के संरक्षण की भी करनी होगी; जिस समाज में सदियों से लोग अपना भरण-पोषण करते आ रहे थे अचानक धीरे धीरे वहॉ की संपदा कैसे नष्ट होने लगी और इस तरह की घटनायें सामने आने लगी हैं।

दाना मांझी के लिए चित्र परिणाम
बहरीन के प्रधानमंत्री प्रिंस खलीफा बिन सलमान अल खलीफा 
     आधुनिक प्रोद्योगिकी और विकास की पश्चिमी सोच ने हमारे देश की पारंपरिक ज्ञान संपदा को भारी क्षति पहुंचाई है। और अब इसकी भरपाई के अलावा ना सिर्फ इसे संरक्षण देने बल्कि आर्थिक समाधान देने की भी आवश्यक्ता है। पर इसके लिए हम सबको राष्ट्रीय चेतना की संकुचित विचारधारा और अलगाववादी सोच से ऊपर उठकर एक राष्ट्र के रुप में संकल्प लेना होगा। और आपस में मिलकर समाधान की दिशा में कार्य करना होगा। जिन्हें देश के इतिहास भूगोल की थोड़ी बहुत भी बुनियादी जानकारी होगी ऐसे लोगों के माध्यम से स्कूल कॉलेज के छात्रों द्वारा आसपास के स्थानीय लोगों जनजातियों का पूरा विवरण एकत्र करवाया जा सकता है। सर्वेक्षणों के द्वारा बहुत ही महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त की जा सकती है और इन सब का एक दस्तावेज तैयार किया जा सकता है जिसके माध्यम से हमें वह सारी जानकारियां मिल सकती हैं जिसमें स्थानीय कलाओं; हुनरों कुशलताओं शिल्प कारीगरी आदि के बारे में आर्थिक संभावनाएं छिपी हैं। वास्तव में देश की समृद्धि का रास्ता बाहर से नहीं बल्कि अंदर ही मौजूद है बस उन सब स्रोतों को ढूंढ निकालने के लिए एक अभियान चलाने की व दृढ़ इच्छाशक्ति की आवश्यक्ता है।
                                                                                                                                                                 *******   प्रतिभा कटियार।