सतत विकास के साथ जरुरी है सतत खोज
प्रसिद्ध तमिल कवि सुब्रह्मण्यम भारती की रचना की कुछ पंक्तियां हैं जिसका आशय है यदि एक भी आदमी के पास खाने को नहीं होगा तो हम इस दुनिया को नष्ट कर देंगे।
हर भारतीय को देश की तरक़्क़ी का लाभ मिले इस प्रयास की खोज ने एक महत्वपूर्ण विकासात्मक सोच को 20 वीं सदी के उत्तरार्ध में जन्म दिया। और उसके बाद विकास के नाम पर अधिकांश अविकसित देशों ने विकसित देशों की नकल करना शुरु कर दिया।
आधुनिक प्रौद्योगिकी ने विस्फोटक की तरह विकास काे और तीव्र कर दिया। इस बीच विकास के कई स्वरुप; अवधारणायें एवं मॉडल उभर कर आए और इससे यह सोच बनने लगी कि पूरी दुनिया के विकास की सोच में समरूपता हो समग्रता और एकता हो।
पर अनगिनत विचारकों से बात करने और ज्ञान प्राप्त करने के बाद अचानक दाना मांझी जैसी घटना के बाद विकास की हर अवधारणा पर सबालिया निशान लग रहे हैं। और इस घटना ने एक बार फिर विकास के नये- नये मार्गों की खोज पर विवश कर दिया है। क्यों ना फिर से भूले बिसरे लोगों आदिवासी समाज और लुप्त जनजातियों के दरवाजों पर दस्तक देना आरंभ किया जाये।
दाना माझी पत्नी का शव लिए हुए अपनी बेटी के साथ |
हमें अपनी खोज और प्रयास देश की विलुप्त हो रही पारंपरिक ज्ञान संपदा प्रौद्योगिकी और उस सामाजिक परिवेश के संरक्षण की भी करनी होगी; जिस समाज में सदियों से लोग अपना भरण-पोषण करते आ रहे थे अचानक धीरे धीरे वहॉ की संपदा कैसे नष्ट होने लगी और इस तरह की घटनायें सामने आने लगी हैं।
बहरीन के प्रधानमंत्री प्रिंस खलीफा बिन सलमान अल खलीफा |
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