विरले ही होते हैं
जो यान बनाते हैं
बाकी तो तमाम
नहीं बना सकते
कागज की भी एक नाव
अभी से
बूढ़े हो गए हैं
उनके ख्यालात
टूटते दाँत और पकते बाल
की गणना में
घंटों वक्त बिताते हैं
विरले ही होते हैं
जो नाविक बन
समंदर की कश्त में
गश्त लगाते हैं
वाकी तो तमाम
तालाबों और नदियों
को पाटकर
दो मंजिला या तीन तल्ले का
घर बनबाते हैं
और दिखती नहीं गौरेया
बालकनी में बैठ कर
चिंता जताते हैं
विरले ही होते हैं
जो स्रजन में लगे
लोगों का हाथ बंटाते हैं
वाकी तो तमाम
योजनाओं को
कागज में समेट
पैसा डकार जाते हैं l
Pratibha Katiyar