गुरुवार, 12 अगस्त 2010

चरैवेति चरैवेति

जीवन का पथ क्या यही है
कि जिस पर मैं चल रही
होकर तल्लीन, विचारशून्य
अपने में मगन
मार्ग से अनजान
किन्तु लक्ष्य का करके भान
तभी अचानक ठोकर खाई
जब राह में पड़े पत्थर से टकराई
हुआ दर्द का एहसास
जो दे गया पथ की कठिनाई का आभास
मन में होने लगी अधीरता
कुछ ही पलों में बढ़ने लगी व्याकुलता
दिमाग ने थोड़ी सी हलचल मचाई
तभी सोच में एक नयी गति आई
जीवन का यह पथ
कि जिस पर मैं चल रही
इतना आसान नहीं
इसमें अवरोध भी है
माना कि शाश्वत है अविराम
जीवन चलते रहने का नाम
किन्तु इसमें गतिरोध भी है
मन का खोजी स्वभाव
फिर से हुआ नूतन पथ का अभाव
क्या कोई नया मार्ग है
जो दे सके इस निरंतरता का अनुदान
शायद प्रभु से मांग रही थी वरदान
जीवन का नया पथ
जिसमे ना हो कोई अवरोध
और ना ही हो गतिरोध
मन ही मन प्रभु से किया अनुरोध
दिखाओ एेसा मार्ग
जिसमे कोई बाधा नहीं
जीवन की निरंतरता
और उसकी शाश्वतता
में कहीं कोई विराम नहीं
सोच रही थी मन ही मन
समझ थी ओढ़े कहीं कफन
मन की यह दुर्बलता
और उसकी ऐसी दशा
शायद गुलामी की है यह व्यथा
जब पाया अपने को बंदी
खुद के ही पिंजरे में थी मैं कैदी
अपने पर लज्जा आई
थोड़ी सी अक्ल लगायी
और फिर बात समझ में आई
मन की इस जड़ता का
होने लगा प्रतिरोध
पाना है यदि सत्य
तो करना होगा खुद पर शोध
चलना है यदि निरंतर
तो रुकना होगा कुछ क्षण
करना होगा जड़ता का विनाश
जो कि ठोकरें देती है आभास
विचारों का बबंडर यहीं थम गया
और चलने का सही मार्ग मिल गया
फिर से शांति छा गयी
दर्द से लड़ने की शक्ति आ गयी
फिर से मन हुआ मगन
उस सत्ता को किया मगन
जिसे अभी महसूस किया
है वो सदा ही अपने पास
जिसका अभी सबूत दिया
आनंदित होकर फिर मन ने
ऐसी दौड़ लगाई
पथ की परिधि भी पार कर ली
और तब सुध बुध आई
जीवन का पथ
हाँ यही है
अब भी है कोई भ्रम
तो सोचो
समय से पूर्व किसकी चली है
सचमुच शाश्वत है अविराम
जीवन चलते रहने का नाम
प्रतिभा कटियार

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