कौन थीं वो
एक दिवंगत संतात्मा के लिए मूलतः यह एक विदेशी महिला हैं जो भारतीय अध्यात्म से प्रेरित होकर जर्मनी से भारत आयीं और प्राचीन भारतीय दर्शन, ऋषि मुनियों की तपस्चर्या और उनके आध्यात्मिक ज्ञान की विरासत से इतना अभिभूत हुईं कि उन्होंने आजीवन भारत में ही निवास करने का संकल्प लिया और साधना के क्षेत्र में ही अपना जीवन समर्पित कर दिया कुछ वर्षों पूर्व संयोग से उनसे मिलने का सौभाग्य मिला मात्र कुछ पलों की यह छोटी सी भेंट सदैव के लिए अपनी स्मृति छोड़ गयी. पिछले वर्ष पुनः उनके दर्शन की इच्छा से उनके आश्रम गयी तो पता चला उन्होंने अपना शरीर छोड़ दिया. उन्ही पुण्यात्मा की स्मृति में एक छोटी सी जो रचना बन पड़ी उसे प्रकाशित कर रही हुँ आश्रम की ओर से यदि अनुमति मिली तो अधिक जानकारी व फोटो भी प्रकाशित की जाएगी .
यूँ ही एक दिन निकली
सड़क के सीधे छोर
सड़क के सीधे छोर
जहाँ अभ्यस्त ना थे पग
कम जाते थे लोग
मैं थी मेरे साथ थी
मेरी एक घनिष्ठ मित्र
हम दोनों चल पड़े थे
किसी जिज्ञासावश
देखें क्या है इस ओर
कुछ ही कदम चले थे
एक परिचित जानी पहचानी
एक परिचित जानी पहचानी
सहपाठी थी जा रही थी
अपने घर की ओर
मार्ग में देखा उसने जब
तो कहा चलो मेरे घर
यह था एक औपचारिक निमंत्रण
जो हमने स्वीकार कर लिया
साथ हो लिए चल पड़े उसके संग
चलो देखें आज यात्रा काकौन सा पथ बाट जोह रहा
द्वार पर आकर चकित थे हम
क्या ऐसे भी बसते हैं लोग यहाँ
यह कोई आमजन ना थे
ये तो थे दूर देश की संस्कृति से आये
आकर आत्मसात हो गए
आकर आत्मसात हो गए
दो देश की संस्कृतियों को
मिला जुला रूप
अपनी नस्ल में दे गये
उससे भी ज्यादा कौतूहल
जो बस मौन में ही व्यक्त हो गया
ना उसने कुछ कहा
ना हमने प्रश्न किया
बस आनन्द बोध और श्रद्धा वश
हमने उनको नमन किया
थीं वो एक ऋषि माता
उम्र थी कोई सत्तर वर्ष
की हो जैसे प्रचंड साधना
उनके व्यक्तित्व से ऐसा कुछ भान हुआ
चारों ओर मधुरता थी
थे बाग़ बगीचे, हरियाली
दूर तक फैली हुई थी कांति की ही छटा निराली
मन पुलकित विस्मित और आनंदित
ऐसे परिवेश को पाकर
जो बस दिखाई देता था
किसी दिवास्वप्न में आकर
स्वप्न आकर जैसे स्वयं साकार हो गया
शायद की हो वर्षों पूर्व तपस्या
जो हल्की सी स्मृति का बोध दे रहा
या फिर किसी संत आत्मा से
मिलना था बस किसी खातिर
शायद नियंता ने ऐसा कुछ
आज का दिन विशेष कर दिया
बस मौन ही मौन था
कोई शब्द ना थे
बस थी आनंदित अभिव्यक्ति
समय का भी कुछ बोध ना था
थे शांत सभी कोई कोलाहल
और कोई शोर ना था
सुन पा रहे थे हम सभी को
विना बोले जैसे हों हम कोई आत्मजन
संवाद का ऐसा उदाहरण
अपूर्व, अनुपम, अदभुत, विलक्षण
आये हैं कुछ विशेष प्रयोजन
यह सन्देश मानो हमें
लक्ष्य की ओर इंगित कर रहा
ऐसे भी होते हैं पल
जीवन के जीवंत पूर्ण क्षण
हमसे आकर कुछ व्यक्त कर रहे
देखो ऐसे जीवन को भी
जो हर द्वंदों से हमको मुक्त कर रहे
कोई वैचारिक आकर्षण विकर्षण
और ना कोई संघर्षों से उपजा घर्षण
कुछ और नया अब प्रकट ना था
है यही शायद गंतव्य की मनोभूमि
ना जाने कौन सी तरंगें किस आवृत्ति से
अंदर प्रवाहमान हो तेजपुंज को प्रदीप्त कर गयीं
और ध्यान की प्रखरता को तीव्र कर गयीं
संवाद अब होने लगा
उस निराकार निर्विकार निश्छल हृदय से
मिल गया मानो मुझे वो
किसी खोजे हुए अंतस कमल से.
****** प्रतिभा कटियार
उम्र थी कोई सत्तर वर्ष
की हो जैसे प्रचंड साधना
उनके व्यक्तित्व से ऐसा कुछ भान हुआ
चारों ओर मधुरता थी
थे बाग़ बगीचे, हरियाली
दूर तक फैली हुई थी कांति की ही छटा निराली
मन पुलकित विस्मित और आनंदित
ऐसे परिवेश को पाकर
जो बस दिखाई देता था
किसी दिवास्वप्न में आकर
स्वप्न आकर जैसे स्वयं साकार हो गया
शायद की हो वर्षों पूर्व तपस्या
जो हल्की सी स्मृति का बोध दे रहा
या फिर किसी संत आत्मा से
मिलना था बस किसी खातिर
शायद नियंता ने ऐसा कुछ
आज का दिन विशेष कर दिया
बस मौन ही मौन था
कोई शब्द ना थे
बस थी आनंदित अभिव्यक्ति
समय का भी कुछ बोध ना था
थे शांत सभी कोई कोलाहल
और कोई शोर ना था
सुन पा रहे थे हम सभी को
विना बोले जैसे हों हम कोई आत्मजन
संवाद का ऐसा उदाहरण
अपूर्व, अनुपम, अदभुत, विलक्षण
आये हैं कुछ विशेष प्रयोजन
यह सन्देश मानो हमें
लक्ष्य की ओर इंगित कर रहा
ऐसे भी होते हैं पल
जीवन के जीवंत पूर्ण क्षण
हमसे आकर कुछ व्यक्त कर रहे
देखो ऐसे जीवन को भी
जो हर द्वंदों से हमको मुक्त कर रहे
कोई वैचारिक आकर्षण विकर्षण
और ना कोई संघर्षों से उपजा घर्षण
कुछ और नया अब प्रकट ना था
है यही शायद गंतव्य की मनोभूमि
ना जाने कौन सी तरंगें किस आवृत्ति से
अंदर प्रवाहमान हो तेजपुंज को प्रदीप्त कर गयीं
और ध्यान की प्रखरता को तीव्र कर गयीं
संवाद अब होने लगा
उस निराकार निर्विकार निश्छल हृदय से
मिल गया मानो मुझे वो
किसी खोजे हुए अंतस कमल से.
****** प्रतिभा कटियार
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No dout blog is an important platform for communication with the message but it is more important for the writer to create words with which u can communicate with the heart of the masses . And u have really done this.