रविवार, 23 अप्रैल 2017

तमिलनाडु के किसान कहीं क्षेत्रीय असंतुलन की स्थिति तो नहीँ

                         तमिलनाडु के किसान 
             कहीं क्षेत्रीय असंतुलन की स्थिति तो नहीँ 

उत्तर प्रदेश के किसानों का कर्ज माफ कर दिया गया है। एक ओर राज्य के किसानों के मुरझाये चेहरे खिले हुए हैं। तो वहीँ तमिलनाडु के किसान विवश होकर पीएमओ ऑफिस के सामने नग्न प्रदर्शन कर रहे ।  किसानों की समस्याएं पूरे देश में कॉमन हैं । सूखा, बाढ़, कर्ज ,जल संसाधनों की कमी, पर्याप्त सिंचाई सुविधाओ का अभाव ,तकनीकी अक्षमता , फ़सल व बीज का रखरखाव, लागत खरीद व उत्पादन मूल्यों  में भारी असमानता, के साथ साथ जलवायु परिवर्तन व फ़सल चक्र की मौसमी प्रतिकूलताओं का असर ये तमाम ऐसी साझा समस्यायें हैं जिनका सामना आये दिन पूरे देश के किसान करते हैं । 

                स्थिति तब और विकट हो जाती है जब बड़ी मात्रा में किसानों की  आत्महत्याओं की खबरें सुनाई देने लग जाती हैं । उत्तर प्रदेश के एक कोने में बैठकर तमिलनाडु के किसानों की समस्याओं का आकलन करना मुश्किल है पर देश की भौगोलिक व सांस्कृतिक विविधता को ध्यान में रखकर किसानों की पहचान व वर्गीकरण कर उनकी समस्याओं को निकट से समझने का आसान तरीका हो सकता है । भारत में क्रषि प्रबंधन के द्र्ष्टिकोण से पूरे देश को क्रषि प्रदेशों में वर्गीकृत करने का प्रयास किया गया है।ये वर्गीकरण फसलों, मिट्टी और जलवायु के आधार पर किया गया है । 
        कई फसलों के मामले में तमिलनाडु मुख्य उत्पादक प्रान्त है यहाँ बागानी फसलें अधिक पैदा की जाती हैं। नारियल, काजू, कहवा, चाय, अनन्नास, सुपारी, गरम मसाले, और रबर बागानी फसलें हैं तो चावल यहाँ का प्रमुख खाद्यान है। तमिलनाडु में अधिकांशतः तालाबों से सिंचाई होती है इसलिये यहाँ सबसे ज्यादा तालाब हैं । राज्य जल संसाधनों के मामले में भले ही पिछडा हो पर जल सरन्क्षण के मामले में अग्रडी है ।चूँकि यहाँ का पानी खारा है और वो ना तो पीने योग्य है और ना ही सिंचाई के उपयुक्त इसलिये तमिलनाडु के लोगो की वर्षा के जल पर निर्भरता ज्यादा है। 
        तमिलनाडु में एक बार तमीलीयन किसान से नारियल पानी पीने के दौरान बात हुई तो उसने बताया नारियल तोड़ने वाले मजदूरों की संख्या घटती जा रही । अब बहुत मुश्किल से ऐसे मजदूर मिल पाते हैं जो नारियल के पेड़ पर चढ़ना जानते हैं इसलिये इनके दाम भी बहुत ऊँचे है और बाज़ार में लोग 5 या 10 रुपये में नारियल पानी पीना चाहते हैं । कभी कभी तो लागत से भी कम लाभ हो पाता है । आज भले ही तमिलनाडु के किसानों की स्थिति भयावह नज़र आ रही हो किंतु इसी राज्य की राजधानी चेन्नई में कोयम्बेड्डु होल्सेल फूड बाज़ार, क्रषि का एक ऐसा मॉडल दिखाई देता है जो पूरे एशिया में एक अलग पहचान रखता है । और ऐसा लगता है यहाँ के लोगों ने  क्रषि प्रबंधन व किसानों की स्थिति सुधारने के लिये एक बढ़िया प्रयास किया है जिसे नकारा नहीँ जा सकता । लगभग 100 एकड़ में फैला कोयम्बेड्डु होल्सेल मार्केट  व सुपर कॉंप्लेक्स सब्जियों , फलों व फूलों का बड़ा बाज़ार है । वर्ष 1996 में इसकी स्थापना हुई थी। इस शॉपिंग कॉंप्लेक्स में आज लगभग 4000 दुकानें हैं जिनमें सब्जियों फलों और फूलों के अलग ब्लॉक बने हैं । साथ ही टेक्सटाइल और फूड ग्रेन मार्केट भी हैं । जहाँ  होलसेल और रिटेल दोनों प्राइज़ में खरीददारी होती है ।साथ ही उपभोक्ता और किसानों के बीच सीधा सम्बन्ध होने से किसानों को लाभ की सम्भावना अधिक रहती है।


             तमिलनाडु क्रषि और किसानों की उभर रही समस्याओं के बीच कम से कम इतना तो अनुमान लगाया जा सकता है कि किसानों ने आत्महत्या जैसा घातक क़दम नहीँ उठाया पर केन्द्र सरकार के समक्ष अपनी माँगे मनवाने के जिस तरह के प्रयोग हो रहे हैं उससे जनआन्दोलनो की गम्भीरता पर प्रश्न खड़े हो रहे हैं । इस तरह के आक्रामक प्रदर्शन को  साँस्क्रतिक विविधता के द्र्ष्टिकोण से देखने की वजाय केन्द्र और राज्य सरकार के बीच उभर रही विषमता के द्र्ष्टिकोण से भी देखा जा रहा है। राज्यों के विकास की जिम्मेदारी केन्द्र से अधिक राज्य की हैं । ऐसे में राज्य सरकार को अधिक गतिशील होने की ज़रूरत है । पर समस्या की गम्भीरता को देखते हुए केन्द्र सरकार को तमिलनाडु के किसानों के विकास में त्वरित मदद की भी आवश्यकता है । चूँकि भारतीय क्रषि से जुड़े हुए तमाम मसले राष्ट्रीय चिंतन का विषय हैं ऐसे में यह प्रश्न उठना स्वाभाविक है , इन राज्यों से उभरने वाले आंदोलन से कहीं क्षेत्रीय असंतुलन की स्थिति तो  नहीँ ।
                                                Pratibha Katiyar 

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