बुधवार, 11 फ़रवरी 2015

प्रहरी

Mere Desh Ka Prahri
मेरे देश का प्रहरी,
क्यों खामोश हो गया।
किसने तुम्हें सुस्त प्रसुप्त किया,
किसने की पहरेदारी,
तुम्हारी धारदार लेखनी पर,
तुम्हारे जांबाज बोलों पर,
किसने मुंह बंद किया।
क्यों सुनाई नहीं देती,
सत्य की आबाज
झूठ से दफ़न कर दी गयी,
हंसती खिलखिलाती जगती जगाती,
आबाज लगाती गुनगुनाती आबाज।
या फिर तुम्हारे स्वर बोलों पर,
किसीने कब्ज़ा कर लिया।
क्या तुम्हे विश्वास में लेकर,
तुम्हारे विचारों का हरण कर लिया।
कुछ ज्ञात है तो कुछ अज्ञात है ,
इसलिए चुप हो 
वरना किसी की क्या बिसात है।
भयग्रस्त स्वयं करते हैं लोग,
झुटे दम्भ और चालाकी से भरे।
सरलता को मार देते हैं वो
जब उठती है चीख
तो कहते डरते हैं लोग,
                                 इसमें तो अग्नि का वास है। 
                                                                   Pratibha Katiyar
 


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