सोमवार, 26 अक्तूबर 2015

मोचीवाला

मोचीवाला 

वो ठहरा मोचीवाला ,
घिसता, कील ठोंकता, चमकाता। 
लगन, परिश्रम, धैर्य और
 एकाग्रता का पाठ पढ़ाता। 
उसे देख बरबस यही ख्याल आता 
ओ मेरे झाड़ फानूस वाले मन के मोची,
जरा ठहर और संभल ले,
कहीं रुक ना जाएँ कदम,
गर छोड़ दे तेरा संग ,
पांव में पड़े जूतों का कोई अंग। 
करवा लेना मरम्मत,
और फिर चल पड़ना दूर तलक,
जहाँ तक जाते हों तेरे कदम। 
                                                                                        प्रतिभा कटियार 


रविवार, 25 अक्तूबर 2015

शब्द सरिता

मेरी एक पुरानी कविता इसे जीवन से नहीं जोड़े, बल्कि देश के  वर्तमान  राजनीतिक हालात को देखकर प्रासंगिक महसूस होती है, शब्द निकलते हैं पर  वो नैसर्गिक रूप से  लम्बी यात्रा  नहीं करते, उस पर बांध बना दिए जाते , तरंगों से ऊर्जा व प्रकाश लेना व उसका सदुपयोग करने का हमें अधिकार है। पर मात्र शब्दों की राजनीति, शब्दों की भावाव्यक्ति------- कहीं हम जाने अनजाने एक कलुषित वातावरण व परिवेश का निर्माण तो नहीं कर रहे , शब्द अच्छे होते हैं मानव मस्तिस्क से उत्पन्न रचना का पवित्रतम स्वरुप,  नि:शब्द  भी अच्छा है तटस्थ होकर घटना का निरीक्षण  व परीक्षण करना , पर शब्दों का कुशल  शिल्प गढ़ पाना रचनात्मक सृजन को जन्म देना है , जीवन को नया आयाम, नया अर्थ देना है। 
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शब्द सरिता 

बह जाने दो 
शब्दों की धार 
क्यों बांध बनाते हो 
मिलेगी शीतलता सबको 
क्यों आग लगाते हो 
शब्द जो अंतस से फूट रहे 
टूट टूट कर पुनः नए शब्द 
फिर कोई आकार गढ़ रहे 
इन नव उदित शब्दों
 की माला पिरोकर 
प्रभु का हार बन जाने दो 
ना स्वयं बुनो 
अर्थों के वक्र जाल 
कुटिलता के भ्रमित व्यूह से 
सरलता को पार पाने दो 
मुझे दूर जाने दो 
मत करो आवेशित
 आवेगपूर्ण
शान्तिपथ की लौ जलाने दो 
मुझे दूर जाने दो 
माना कि यहाँ भी है और वहाँ भी है 
      शांति का हरेक उद्गम  
      पर यही विश्वास पाने 
          निर्जन वनों में 
  पथिक बन कर घूम आने दो 
        मिलेगा कोई शावक 
       या फिर चंचल हिरणी 
   इन नन्हें वन के निवासियों से 
        कुछ संवाद कर आने दो 
मत रोको 
स्नायु मंडल में उठ रही 
जो ज्वार तरंगें 
इन तरंगों को आकाशीय 
मार्ग पाने दो 
मत बनाओ बाँध 
नैसर्गिक मार्ग पाने दो 
प्राण वायु को धरा पर 
शुद्धता से परिपूर्ण आने दो 
एक नयी दुनिया बसाने दो। 
                                            -------------------------------- प्रतिभा कटियार 






शुक्रवार, 23 अक्तूबर 2015

सामाजिक समरसता से भी हो सकता है नदियों का प्रदूषण दूर

सामाजिक समरसता से  भी हो सकता है  नदियों का प्रदूषण दूर 

                                                                 *****       प्रतिभा कटियार 

बात नदियों की है, ग्वालियर की एक  नदी मुरार को मृतप्राय अवस्था में  देखा , ऐसी ना जाने कितनी छोटी बड़ी  नदियां हैं जो पूरी तरह लुप्त होने के कगार पर हैं कुछ तो अपना अस्तित्व  पूरी तरह गँवा भी चुकी हैं इनके दस्तावेज या तो इतिहास के पन्नों में दर्ज हैं या फिर सिर्फ चंद लोगों की यादों में। ऐसी ही एक याद  ताजा हो आई जो ओड़िसा के जाजपुर जिले के एक छोटे से गॉव दशरथपुर की है। अपनी पत्रकारिता की पढ़ाई करने के बाद हमें इंटर्नशिप करने का अवसर मिला कला और संस्कृति के प्रदेश ओड़िसा में , उसी दौरान कुछ दिन इस गॉव को भी करीब से देखने का मौका मिला ।

 गॉव् है दशरथपुर, जिला जाजपुर राजधानी भुवनेश्वर से १०० किलोमीटर दूर। यहाँ एक नदी बहती है वैतरिणी , वैतरिणी के इस पार और उस पार बसे हुए दो गॉव् , इन दोनों गॉवों के बीच की दूरी बस इतनी है जितनी चौड़ाई में बहती है नदी।  पर इस गॉव् से उस गॉव् तक जाने के लिए कोई पुल या सड़क नहीं है बस नाव का सहारा है यानी परिवहन का एक ही साधन है नाव। आज जब मुरार नदी के आस पास बसे हुए लोगों को बदहाल स्थिति में देखा, उन्हें प्रदूषित नदी के किनारे जीवन यापन करते ,और उसके कारण आये दिन संक्रामक बीमारियों से जूझने की बात सुनी , नदी के आस पास का सामाजिक परिदृश्य देखा तो अचानक दशरथपुर  गॉव् व वहाँ का सामाजिक परिदृश्य दिमाग में चलचित्र की तरह घूम गया , वही गॉव् जहाँ हम कुछ दिन ठहरे थे  इसी के  पास बहती है लम्बी चौड़ी नदी वैतरिणी। 
          यह गॉव् कितने सुन्दर हैं इसकी कल्पना वास्तव में अकल्पनीय है , चारों और प्रकृति की बौछार है , शायद एक चित्रकार के बस की भी बात नहीं है इन गॉवों की तसवीर बनाना लोग बेहद गरीब हैं ,कुछेक कच्चे पक्के मकान हैं पर ज्यादातर लोगों की अपनी झोपड़ियां हैं, हर दो चार  झोपड़ियों के बीच एक तालाब है इन तालाबों में खिले रहते हैं कमल व् अन्य जलीय पुष्प, आँखों को सुखद लगने वाली चारों ओर हरियाली ही हरियाली ,नारियल सुपारी और केले के पेड़ एक दूसरे से होड़ लेते हुए अपनी सुंदरता बखान कर रहे , झोपड़ी पर इतनी सुन्दर कलाकारी की है जैसे किसी कलाकार की उत्कृष्ट रचना हो , कहीं कहीं झोपडी के चारों ओर बाड़ लगी है और बीच आँगन में तुलसी का पौधा इसके चारों तरफ रंगोली व् अल्पना का सुन्दर चित्रांकन।
तूफान के समय का एक दृश्य 
 सब कुछ बहुत सुन्दर व् प्राकृतिक है लेकिन यही प्रकृति इसे विकृत भी कर देती है जब अक्सर गावों में तूफ़ान व बाढ़ आते हैं , समुद्री तट से लगा हुआ ओड़िसा जहाँ अक्सर तूफ़ान आते रहते हैं इन जैसे सैकड़ों गावों को अपनी चपेट में ले लेते हैं , गॉव् के लोग बेहद सीधे सादे हैं , नारियल, सुपारी, केले व पान  की खेती तथा  कमल और मछली पालन कर अपना गुजारा करते हैं ,तूफ़ान व  भारी वर्षा के बाद जब बाढ़ आती है तो सारी फसल चौपट हो जाती है ,नदी का पानी बाड़ को तोड़कर खेतों में घुस जाता है और सारी फसल चौपट , बच्चों को स्कूल जाने के लिए वैतरिणी के इस पार या उस पार जाना पड़ता है। उन्हें स्कूल तक छोड़ने के लिए कोई स्कूल बस नहीं आती बल्कि वो अपने  बस्ते लेकर  नावों में  बैठते  हैं, नांव उन्हें  उस पार तक छोड़ देती इसके बाद वो पैदल या साईकिल से अपने स्कूल जाते हैं।  बाढ़ के समय  उनके स्कूल अक्सर बंद हो जाते, इस दौरान इन ग्रामीणों की रहने, खाने पीने व कमाने के संकट के चलते इनकी अर्थव्यवस्था पटरी से उतर जाती पर जीवन के इन तमाम उतार चढ़ावों के बाबजूद लोगों को सुव्यवस्थित तरीके से जीने का ढंग पता है, साफ़  स्वच्छ्ता , सामाजिक रीति - रिवाजों ,मान्यताओं, सांस्कृतिक व नैतिक गरिमा पूर्ण जीवन जीने में ना तो गरीबी व अशिक्षा रूकावट बनती और ना ही प्राकृतिक आपदाएं बल्कि आपसी सहयोग से ये अपना जीवन फिर पटरी पर ले आते।
गायत्री प्रज्ञा पीठ दशरथपुर 
           आज जब  शहरी जीवन के कूड़े - करकट के बीच किसी तरह  पल रहे व गुजर बसर कर रहे लोगों के सामाजिक जीवन को देखती हुँ व भारत की इस बदहाली की तस्वीर को तमाम  राष्ट्रीय व अंतराष्ट्रीय  मंच पर उकेरते हुए देखती हुँ तो  देश के इस सबसे गरीब राज्य की सामाजिक सम्पन्नता सुकून  व संघर्ष से जूझने का हौसला  प्रदान करती है।  साथ ही प्रेरणा ये भी मिलती है क्या विना किसी सरकारी मदद के सामाजिक समरसता से नदियों को प्रदूषित होने से बचाया नहीं जा सकता।

नदी किनारे का दृश्य 
झोपडी पर बनाई गयी सुन्दर अल्पना 






बुधवार, 14 अक्तूबर 2015

त्वरित कार्यवाही की है आवश्यकता मुरार नदी को

त्वरित कार्यवाही की है आवश्यकता मुरार नदी को 

प्रतिभा कटियार
ग्वालियर : ना तो  हम किसी अभियान में शामिल होने जा रहे, और ना किसी परियोजना का हिस्सा बनने, मुद्दा है मुरार नदी का जिस पर कोई दीर्घकालीन योजना नहीं, बल्कि त्वरित कार्यवाही करने की आवश्यकता  है।  मामला नदी सरंक्षण व् पुनर्जीवन से जुड़ा है और इन दोनों बातों का जिक्र इसलिए करना पड़ रहा ताकि हम  इन दोनों बातों का अर्थ समझ सकें। बात मुद्दे से भटकाने की नहीं है बल्कि उसके इर्द गिर्द जमी परत को हटा कर मुद्दे के और करीब जाने की है।
दिनांक ११ अक्टूबर, २०१५ तथा पूर्व से  ही निर्धारित समय ठीक ९ बजकर ३० मिनट। आज हम ग्वालियर शहर की एक खास नदी जो आज की तारीख में एक गंदे नाले की तरह दिखाई दे रही थी उसका भ्रमण करने आये थे, नदी इसलिए कहना पड़ रहा क्योंकि हमें इस नाले का परिचय नदी के रूप में दिया गया और विलुप्ति की ओर अग्रसर इस नदी के अतीत का किस्सा सुनाया गया। बताया गया कि यह नदी आज से करीब सत्तर वर्ष पूर्व अपने भव्य रूप में हुआ करती थी तथा शहर के बीचो-बीच शान से बहा करती थी, इसका धार्मिक और ऐतिहासिक जुड़ाव यहाँ के नागरिकों के स्मृति पटल पर यादों के रूप में है। हम जिससे भी मिले सबने इसके प्राचीनतम भव्य रूप की गाथा सुनाई और बताया नदी हमारे रीति-रिवाजों, संस्कृति व् पर्व परंपरा से किस तरह जुड़ी रही है। 
             
              पर इन सत्तर वर्षों में ऐसा क्या हुआ इसे जानने को उत्सुक उस भ्रमण में शामिल सभी लोग थे, बताते चलें कि एक गैर सरकारी संघटन स्पंदन द्वारा नदी सरंक्षण व पुनर्जीवन नाम से राष्ट्रीय मीडिया कार्यशाला का आयोजन जीवाजी विश्वविद्यालय, ग्वालियर में था। कार्यशाला को मीडिया चौपाल नाम दिया गया इस चौपाल में करीब ३०० से अधिक लोगों ने अपनी भागीदारी दी थी जिसमें मीडिया से जुड़े तमाम लोग शामिल थे, जाने माने पत्रकार, मीडिया की पढ़ाई कर रहे छात्र-छात्राएं, शिक्षक गढ़, शोधार्थी, विषय के जानकार विशेषज्ञ तथा विशिस्ट अथिति।

मुरार नदी :ग्वालियर 
              नदी के हालात का जायजा लेते हुए तथा आस पास बसे स्थानीय लोगों से जानकारी लेते हुए हम लोग उस जगह एकत्रित हुए जहाँ इस नदी के वारे में गंभीर चर्चा होनी थी, तथा सामूहिक रूप से इस मसले का हल निकाला जाना था। कई लोगों ने इस पर अपने व्यक्तिगत विचार रखे, नदी से जुड़े संस्मरण व् इसकी वजह से आस-पास फ़ैल रही बीमारी के वारे में बताया, बाद में हमें एक ऐसे व्यक्ति से मिलाया गया जो ७० साल के बुजुर्ग थे और इन्होंने स्थानीय स्तर से लेकर दिल्ली हाईकोर्ट तक नदी बचाने की लड़ाई लड़ी थी। आज भी वो ये लड़ाई लड़ रहे। एक प्रेस कांफ्रेंस मंच के माध्यम से हम लोगों ने उनकी बात सुनी व सबाल जवाब किये। हरिशंकर जी नाम के ये बुजुर्ग काफी ज्ञानी व् ज्योतिष भी हैं। उन्होंने बताया कि यह नदी कभी महानदी हुआ करती थी। साफ़ स्वच्छ व् पवित्र पानी था, जिसमें लोग आचमन करते थे, श्रावण के महीने में मेला लगता था, कुछ दूर आगे चलके एक गुफा थी जिसमें महात्मा रहते थे, गणेश विसर्जन होता था व् अक्टूबर -नवंबर माह में पंडित लोग तर्पण करते थे , पानी इतना साफ़ था कि पैसे डालने से दिखाई देते थे।

          नदी को शहर की पुरानी धरोहर समझकर इसके बचाव के लिए वो आगे आये शुरुआत में उन्हें सबने आश्वासन दिया किन्तु कोई कार्यवाही नहीं हुई तो वो इसे आगे कोर्ट में ले गए , ग्वालियर से भोपाल, भोपाल से दिल्ली व् दिल्ली से फिर ग्वालियर मामला लटकता रहा। प्रशासन ने इसे अहमदाबाद की साबरमती की तरह बनाने का आश्वासन दिया। साढ़े तीन करोड़ का प्रोजेक्ट बना पर पैसा एक नहीं लगाया गया, ७ करोड़ रुपये का कमीशन भी पारित किया गया पर यह योजना भी धरी रह गयी, बस काम हुआ तो इतना कि सीवेज लाइन डाल दी गयी और मकान तोड़ने की बात की गयी, सीवेज लाइन तो बनी पर इसके ट्रीटमेंट का कोई प्लांट नहीं लगा। 
       
          आज स्थिति यहाँ तक पहुँच गई कि सारे शहर का सीवेज व कूड़ा कचरा इन पाइपों के जरिये सीधे नदी में आके गिरता है , यहाँ तक गाय भैंस के गोबर को लोग ट्रकों में भरकर नदी किनारे डाल जाते हैं, नदी के आस -पास उन लोगों ने अवैध कब्ज़ा कर लिया जिसमें वो लोग भी शामिल हैं जो भू माफिया हैं नदी के किनारे की जमीन को घेरकर उसमें सब्जियाँ व् अन्य फसलें उगा  रहे। इन्हीं के बीच गरीब लोगों की झोपड़ पट्टी भी है।  नदी के दोनों ओर के लोगों में इससे जुड़े कई मुद्दों पर आपसी तनातनी दिखाई दी।

          बुजुर्ग हरिशंकर जी ने मीडिया चौपाल की इस सहभागिता को लेकर आभार भी व्यक्त किया और बताया कि उन्हें मीडिया कर्मियों से काफी सहयोग भी मिला । शहर से निकलने वाली पत्रिका का जिक्र करते हुए कहा, कि जागरूकता फ़ैलाने में इसकी अहम भूमिका रही। तीन घंटे तक चले इस नदी भ्रमण सत्र में नदी के प्रति जागरूकता बढ़ाने ,इसे पुनर्जीवित करने व् सरंक्षण देने के लिए कार्यशाला में शामिल सभी लोगों से रिपोर्टिंग की भी अपील की गई और कहा गया कि पत्रकार इस पर आवाज उठायें और अपनी भूमिका का निर्वाह करें। 

नदी से जुड़े कुछ तथ्य 





  •  40 किमी तक शहर में बहती है नदी 
  • नदी का उद्गम रमौआ बांध से बताया जाता है 
  • डैम बनाने के चलते ठीक से प्रवाहित ना हो पाने को भी एक कारण मानते हैं यहाँ के स्थानीय निवासी 


मुरार नदी का एक दृश्य , ग्वालियर 


 



मीडिया चौपाल में भागीदारी कर रहे लोग 
श्री हरिशंकर जी : मुरार नदी के वारे में बताते हुए