रविवार, 25 अक्तूबर 2015

शब्द सरिता

मेरी एक पुरानी कविता इसे जीवन से नहीं जोड़े, बल्कि देश के  वर्तमान  राजनीतिक हालात को देखकर प्रासंगिक महसूस होती है, शब्द निकलते हैं पर  वो नैसर्गिक रूप से  लम्बी यात्रा  नहीं करते, उस पर बांध बना दिए जाते , तरंगों से ऊर्जा व प्रकाश लेना व उसका सदुपयोग करने का हमें अधिकार है। पर मात्र शब्दों की राजनीति, शब्दों की भावाव्यक्ति------- कहीं हम जाने अनजाने एक कलुषित वातावरण व परिवेश का निर्माण तो नहीं कर रहे , शब्द अच्छे होते हैं मानव मस्तिस्क से उत्पन्न रचना का पवित्रतम स्वरुप,  नि:शब्द  भी अच्छा है तटस्थ होकर घटना का निरीक्षण  व परीक्षण करना , पर शब्दों का कुशल  शिल्प गढ़ पाना रचनात्मक सृजन को जन्म देना है , जीवन को नया आयाम, नया अर्थ देना है। 
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शब्द सरिता 

बह जाने दो 
शब्दों की धार 
क्यों बांध बनाते हो 
मिलेगी शीतलता सबको 
क्यों आग लगाते हो 
शब्द जो अंतस से फूट रहे 
टूट टूट कर पुनः नए शब्द 
फिर कोई आकार गढ़ रहे 
इन नव उदित शब्दों
 की माला पिरोकर 
प्रभु का हार बन जाने दो 
ना स्वयं बुनो 
अर्थों के वक्र जाल 
कुटिलता के भ्रमित व्यूह से 
सरलता को पार पाने दो 
मुझे दूर जाने दो 
मत करो आवेशित
 आवेगपूर्ण
शान्तिपथ की लौ जलाने दो 
मुझे दूर जाने दो 
माना कि यहाँ भी है और वहाँ भी है 
      शांति का हरेक उद्गम  
      पर यही विश्वास पाने 
          निर्जन वनों में 
  पथिक बन कर घूम आने दो 
        मिलेगा कोई शावक 
       या फिर चंचल हिरणी 
   इन नन्हें वन के निवासियों से 
        कुछ संवाद कर आने दो 
मत रोको 
स्नायु मंडल में उठ रही 
जो ज्वार तरंगें 
इन तरंगों को आकाशीय 
मार्ग पाने दो 
मत बनाओ बाँध 
नैसर्गिक मार्ग पाने दो 
प्राण वायु को धरा पर 
शुद्धता से परिपूर्ण आने दो 
एक नयी दुनिया बसाने दो। 
                                            -------------------------------- प्रतिभा कटियार 






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No dout blog is an important platform for communication with the message but it is more important for the writer to create words with which u can communicate with the heart of the masses . And u have really done this.