शुक्रवार, 23 अक्तूबर 2015

सामाजिक समरसता से भी हो सकता है नदियों का प्रदूषण दूर

सामाजिक समरसता से  भी हो सकता है  नदियों का प्रदूषण दूर 

                                                                 *****       प्रतिभा कटियार 

बात नदियों की है, ग्वालियर की एक  नदी मुरार को मृतप्राय अवस्था में  देखा , ऐसी ना जाने कितनी छोटी बड़ी  नदियां हैं जो पूरी तरह लुप्त होने के कगार पर हैं कुछ तो अपना अस्तित्व  पूरी तरह गँवा भी चुकी हैं इनके दस्तावेज या तो इतिहास के पन्नों में दर्ज हैं या फिर सिर्फ चंद लोगों की यादों में। ऐसी ही एक याद  ताजा हो आई जो ओड़िसा के जाजपुर जिले के एक छोटे से गॉव दशरथपुर की है। अपनी पत्रकारिता की पढ़ाई करने के बाद हमें इंटर्नशिप करने का अवसर मिला कला और संस्कृति के प्रदेश ओड़िसा में , उसी दौरान कुछ दिन इस गॉव को भी करीब से देखने का मौका मिला ।

 गॉव् है दशरथपुर, जिला जाजपुर राजधानी भुवनेश्वर से १०० किलोमीटर दूर। यहाँ एक नदी बहती है वैतरिणी , वैतरिणी के इस पार और उस पार बसे हुए दो गॉव् , इन दोनों गॉवों के बीच की दूरी बस इतनी है जितनी चौड़ाई में बहती है नदी।  पर इस गॉव् से उस गॉव् तक जाने के लिए कोई पुल या सड़क नहीं है बस नाव का सहारा है यानी परिवहन का एक ही साधन है नाव। आज जब मुरार नदी के आस पास बसे हुए लोगों को बदहाल स्थिति में देखा, उन्हें प्रदूषित नदी के किनारे जीवन यापन करते ,और उसके कारण आये दिन संक्रामक बीमारियों से जूझने की बात सुनी , नदी के आस पास का सामाजिक परिदृश्य देखा तो अचानक दशरथपुर  गॉव् व वहाँ का सामाजिक परिदृश्य दिमाग में चलचित्र की तरह घूम गया , वही गॉव् जहाँ हम कुछ दिन ठहरे थे  इसी के  पास बहती है लम्बी चौड़ी नदी वैतरिणी। 
          यह गॉव् कितने सुन्दर हैं इसकी कल्पना वास्तव में अकल्पनीय है , चारों और प्रकृति की बौछार है , शायद एक चित्रकार के बस की भी बात नहीं है इन गॉवों की तसवीर बनाना लोग बेहद गरीब हैं ,कुछेक कच्चे पक्के मकान हैं पर ज्यादातर लोगों की अपनी झोपड़ियां हैं, हर दो चार  झोपड़ियों के बीच एक तालाब है इन तालाबों में खिले रहते हैं कमल व् अन्य जलीय पुष्प, आँखों को सुखद लगने वाली चारों ओर हरियाली ही हरियाली ,नारियल सुपारी और केले के पेड़ एक दूसरे से होड़ लेते हुए अपनी सुंदरता बखान कर रहे , झोपड़ी पर इतनी सुन्दर कलाकारी की है जैसे किसी कलाकार की उत्कृष्ट रचना हो , कहीं कहीं झोपडी के चारों ओर बाड़ लगी है और बीच आँगन में तुलसी का पौधा इसके चारों तरफ रंगोली व् अल्पना का सुन्दर चित्रांकन।
तूफान के समय का एक दृश्य 
 सब कुछ बहुत सुन्दर व् प्राकृतिक है लेकिन यही प्रकृति इसे विकृत भी कर देती है जब अक्सर गावों में तूफ़ान व बाढ़ आते हैं , समुद्री तट से लगा हुआ ओड़िसा जहाँ अक्सर तूफ़ान आते रहते हैं इन जैसे सैकड़ों गावों को अपनी चपेट में ले लेते हैं , गॉव् के लोग बेहद सीधे सादे हैं , नारियल, सुपारी, केले व पान  की खेती तथा  कमल और मछली पालन कर अपना गुजारा करते हैं ,तूफ़ान व  भारी वर्षा के बाद जब बाढ़ आती है तो सारी फसल चौपट हो जाती है ,नदी का पानी बाड़ को तोड़कर खेतों में घुस जाता है और सारी फसल चौपट , बच्चों को स्कूल जाने के लिए वैतरिणी के इस पार या उस पार जाना पड़ता है। उन्हें स्कूल तक छोड़ने के लिए कोई स्कूल बस नहीं आती बल्कि वो अपने  बस्ते लेकर  नावों में  बैठते  हैं, नांव उन्हें  उस पार तक छोड़ देती इसके बाद वो पैदल या साईकिल से अपने स्कूल जाते हैं।  बाढ़ के समय  उनके स्कूल अक्सर बंद हो जाते, इस दौरान इन ग्रामीणों की रहने, खाने पीने व कमाने के संकट के चलते इनकी अर्थव्यवस्था पटरी से उतर जाती पर जीवन के इन तमाम उतार चढ़ावों के बाबजूद लोगों को सुव्यवस्थित तरीके से जीने का ढंग पता है, साफ़  स्वच्छ्ता , सामाजिक रीति - रिवाजों ,मान्यताओं, सांस्कृतिक व नैतिक गरिमा पूर्ण जीवन जीने में ना तो गरीबी व अशिक्षा रूकावट बनती और ना ही प्राकृतिक आपदाएं बल्कि आपसी सहयोग से ये अपना जीवन फिर पटरी पर ले आते।
गायत्री प्रज्ञा पीठ दशरथपुर 
           आज जब  शहरी जीवन के कूड़े - करकट के बीच किसी तरह  पल रहे व गुजर बसर कर रहे लोगों के सामाजिक जीवन को देखती हुँ व भारत की इस बदहाली की तस्वीर को तमाम  राष्ट्रीय व अंतराष्ट्रीय  मंच पर उकेरते हुए देखती हुँ तो  देश के इस सबसे गरीब राज्य की सामाजिक सम्पन्नता सुकून  व संघर्ष से जूझने का हौसला  प्रदान करती है।  साथ ही प्रेरणा ये भी मिलती है क्या विना किसी सरकारी मदद के सामाजिक समरसता से नदियों को प्रदूषित होने से बचाया नहीं जा सकता।

नदी किनारे का दृश्य 
झोपडी पर बनाई गयी सुन्दर अल्पना 






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