बहुत पुरानी बात है
बचपन की छोटी सी याद
कह सकते हैं इसे मूर्खता, अज्ञानता
या बालमन की महज एक कल्पना शीलता
उम्र के तीसरे, चौथे या पांचवे पड़ाव के बीच
देखी मैंने घर में टंगी एक तस्वीर
तस्वीर थी विष्णु भगवान की
बड़ी, लम्बी हर पल हमारी ओर निहारती
दे रही थी आशीर्वाद वो हमें चार हाथों के बीच
एक हाथ में था शंख, दूसरे में था चक्र
तीसरे में गदा और चौथा हाथ था
प्रेम और आशीष से भरा
मेरे मन में थीं बालमन की ढेरों जिज्ञासायें
क्यों निहारते रहते हर पल
हमारी और खुला हाथ उठाये
बहुत दिनों से बस यही उत्तर पाने को
मन में उठ रहा गहरा प्रश्न था
किससे पूँछूँ मन की बात
क्यों नहीं उठता
औरों के मन में ऐसा झंझावात
एक दिन आखिर पूँछ ही लिया
घर में आये मामा जी से
कहा पीटने के लिए उठा रखा है हाथ
उनके लिए जो बच्चे शैतानी करते
यूँ ही उन्होंने मजाक में कह दिया
पर मेरे मन में यह अधूरा उत्तर
आँखों को खटक गया
प्रकृति का एक सीधा नियम
बालमन के मस्तिष्क पटल पर
अपने बीज रौंप गया
हर क्रिया की होती है
बराबर और विपरीत प्रतिक्रिया
वो आशीष भरा हाथ
जो प्रेम और स्नेह की वर्षा लुटा रहा था
अब मेरे मन में किसी और रूप में खटक रहा था
सब कुछ छोड़ कर दिखता केवल
उनका उठाया गया हाथ
बिना किसी गलती के बस यूँ ही
मानो मुझे पड़ी हो डांट
जब भी देखती बस उनका हाथ
अब सिर्फ कमरे में मानो दो जन ही थे
एक मै थी दूसरे थे भगवान
पर हाय री मूर्ख कल्पनाशीलता
कैसी मची थी संबंधों की खींचतान
वो हाथ जो प्रेम औरआशीष दे रहा था
गलत जानकारी के कारण
अब मुझपर यूँ ही बरस रहा था
मन ही मन तकरार बढ़ चली
भक्त और भगवान की खाई भी उभरने लगी
एक दिन बस यूँ ही अचानक
सनक का गुबार फूटा
कमरे में थी अकेली, डर का कहर टूटा
कहीं हार ना जाऊं
एक मामूली सी तस्वीर के आगे
इससे पहले कि वो जड़ दे अपना हाथ
मुझे अकेला पाकर
मैंने दे मारी एक छोटी सी चाबुक
अपने को असुरक्षित मानकर
नादानी की चरम सीमा थी यह
पर नहीं थी मेरी पूरी गलती
मुझे तो बस मिली थी शह
बस यही वो क्षण था
बिछाया गया हो जाल जैसे,
मेरी ओर अपलक निहारने का
अब मेरी दुर्बुद्धि का बस अंत था
तसवीर अब भी मुस्करा रही थी
मेरी ओर अपलक निहार रही थी
कुछ पल मैंने उसे देखा
और फिर अलगाव की बही सीमा रेखा
मैंने तस्वीर की ओर देखना बंद कर दिया
अंदर ही अंदर भय का भूत घुस गया
डरने लगी भगवान की उस तस्वीर से
शायद हार गयी थी मैं उस धीर गम्भीर वीर से
या चिढ़I रहे थे अब मुझे वो मुस्कुराती तस्वीर से
आशीष देने की भूमिका में वो अब भी खड़े थे
एक नया अध्याय प्रेम का
अब वो मन पर गढ़ रहे थे
तर्क से परे है वो अहम से भी ऊपर
वही समझ पाता उन्हें जो विश्वास करता उन पर
हे प्रभु तुम्हारा आशीष रहे सदा हम सभी पर I
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