कुछ अदभूत, अनुपम, अपूर्व, विलक्षण,
क्या देखें हैं तुमने कई ऐसे क्षण,
यात्रायें अनोखी, अचानक, आश्चर्यपूर्ण,
करते हैं राही जब मार्ग का अवलोकन।
रोमांचक, सरल, सुन्दर संयोजन,
कुछ पाने, खोने, देने ,लेने का
यह कैसा अभियोजन।
संवेदनाएं उठती, गिरती, मरती,
मन शांत, क्लांत, अशांत,
समय के झंझावातों से निपटने को,
मिटते, सिमटते, सहेजते, बिखेरते,
कभी आता सैलाब तो कभी तूफान।
बैठते, विचारते, करते मूल्यांकन,
समय से परे, समय के साथ,
कहीं ताजगी, उदासी, उल्लास, हास- परिहास,
भावों का यह कैसा विन्यास।
आकर्षण, विकर्षण, घर्षण, घूर्णन,
विज्ञान का यह कैसा विधान,
कण कण की अलग पहचान।
ईश्वर, अल्लाह, मसीहा, तथागत,
सन्त, फ़क़ीर, नेता, पैगम्बर,
शाखाओं से उपजते नये नये गुणी-जन।
सापेक्ष, निरपेक्ष, शून्य, अनन्त,
कहीं ना कहीं तो होगा अंत।
मन आकुल, व्याकुल, पागल, परमहंस,
कौन जाने कहाँ आदि और कहाँ है अन्त।
भूत, वर्तमान, भविष्य,
जन्म, मृत्यु, पुनर्जन्म,
जन्म, मृत्यु, पुनर्जन्म,
आवागमन के चक्रों का
यह कैसा आन्दोलन।
यह कैसा आन्दोलन।
आशायें, अपेक्षाएं, चिंताएं, व्यथाएं ,
मानव मन की दुर्बल आस्थाएं.
बचपन, जवानी, बुढ़ापा, अल्हड़पन,
चंचल, गंभीर, शान्त, व्याकुल मन.
सुख, दुःख, आसक्ति विरक्ति,
रे मानव यह कैसी दुर्बुद्धि.
जड़, चेतन, सजीव, निर्जीव,
क्या प्राणी रहते हैं सिर्फ इनके बीच
धरती, गगन, नदियां, पवन,
क्या इन्ही में केवल बसता जीवन,
सगुण, निर्गुण, द्वैत, अद्वैत,
उपासना के मात्र यही चार भेद.
शांति कलह, उन्माद, प्रमाद,
घर- घर में क्यों झगड़ा फसाद.
आवेग, संवेग, हास्य रुदन,
इसी से उपजता भावनाओं का क्रंदन.
दया, माया, करुणा, प्रेम,
क्यों व्यर्थ अलापते यह राग वीर अनेक.
परमाणु, अणु, तत्व, पदार्थ,
लघु से विशाल विशाल में सब एकाकार.
घृणा, प्रेम, स्वार्थ परमार्थ,
आसुरी सम्पदा के नवीन हथियार.
मृगमरीचिका सा होता आभास,
द्वंदों में जीते हैं सब कहते विरोधाभास।
******* प्रतिभा कटियार
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