वो पहला दिन,
आती जाती लहरों से की थी मुलाकातें।
तट पर फैली थी,
उसकी ही विस्तृत काया,
दूर दूर तक दिखती थी,
उसके साम्राज्य की माया।
जैसी तरंगें समंदर में थीं,
वैसी हिलोरें मन में भी थीं,
कुछ और चीज का नामोनिशान ना था ,
लगता था सृस्टि का यह अंतिम पड़ाव था।
इसके पार भी हो सकता है भूमि का एक टुकड़ा,
यह बस मानचित्र में देखा गया,
ज्ञान का विश्वास था।
तट पर थे अनेकों सैलानी,
हिंदी मलयाली तमिल मराठी,
ऐशियाई, अफ़्रीकी, अमेरिकी, यूरोपी,
उमंग बिखेरते सब उसके आँगन में,
लगता जैसे पलक पांवड़े बिछाये हो,
समंदर हम सबके स्वागत में।
आती जाती लहरें,
सबका स्वागत करतीं,
और इनसे पुलकित होकर,
हम सबकी बांछें खिलती।
दूर से आती लहरें उठती,
गिरतीं और पास तक आती,
स्पर्श करतीं हमें भिगोतीं,
और फिर वापस लौट जाती।
बस यूँ ही चलता रहता,
एक दूसरे को पकड़ने का यह खेल,
लगता प्रकृति भी हमारे साथ,
करना चाहती है हम सबसे मेल।
जीना चाहती है हमारे साथ,
करना चाहती है संवाद,
आओ कुछ पल गुजारो,
मैं दूंगी तुम्हें प्रफुल्लित उल्लास।
असीम गहराईयों का अहसास,
जो बुलंद करेगी हौसले,
आसमान को छूने का,
एक दुर्गम प्रयास,
विकसित होगा मन,
हृदय का भी होगा विस्तार,
समंदर ने किया कुछ ऐसा संचार।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
No dout blog is an important platform for communication with the message but it is more important for the writer to create words with which u can communicate with the heart of the masses . And u have really done this.