जीवन दर्शन
मै जीना चाहती हूँ
जीवन को पूर्णता के छोर तक
जानती हुँ व्योम अनंत है , असीम है
पार नहीं कर सकती
पर एक लघु पिंड बनकर
एक एक कर सारी उल्काएं
पार कर जाना चाहती हुँ
मैं जीना चाहती हुँ
जानती हूँ साथ चलेगा नहीं कोई
इसलिए अपनी नाव खुद खेना चाहती हुँ
राह में आते जाते पथिकों को
साथ में यदि चल पड़ें
तो अपने भावों को व्यक्त कर
राह में आते जाते पथिकों को
साथ में यदि चल पड़ें
तो अपने भावों को व्यक्त कर
नीरसता को दूर कर
सरसता को सहेजना चाहती हूँ
मैं जीना चाहती हुँ
चाह है एक मार्गदर्शक की
जो अँधेरी राहों से बचा सके
गर अपना पथ भूल गए
किसी अनहोनी अनजानी घटनावश
या अन्धकार में निर्भय होकर
खुद प्रकाश बन जाने की इच्छावश
क़िसी जिज्ञासा कौतूहल या मायावश
या किसी राग द्वेष छल दम्भ झूठ
चालाक जनों के कुटिल दंश
इनसे बच पाने की
आहट पाना चाहती हुँ
मैं जीना चाहती हूँ
है मुझे विश्वास अडिग
एक एक कर सारी उल्का पार कर
मैं सितारों की दुनिया में कदम रखूंगी
मैं भी चमकूँगी खुद की चमक से
बिखेर सकूंगी प्रकाश
अन्धकार को हर सकूँगी
और दे सकूंगी सारे जहाँ को
एक असीमित उल्लास
****** प्रतिभा कटियार
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